अहंकार की पूजा
मनुष्य जितना कंगाल है, उससे ज्यादा दंभी है; इसीलिए अहंकार की पूजा के लिए वह धर्म का सहारा लेता है। हरेक आदमी धन का अहंकार नहीं कर सकता; दुनिया में एक-से-एक बढ़कर धनी पड़े हैं और धन का क्या ठिकाना, आज है कल नहीं है, तब उसके सहारे अहंकार कैसे खड़ा किया जा सकता है? बल और रूप की भी यही दशा है। दो दिन बुखार आ जाए, सारा बल निकल जाए, गाल पिचक जाएँ, बुढ़ापा भी बल और रूप का दिवाला निकाल देता है, फिर बल और रूप भी एक-से-एक बढ़कर हैं। अधिकार आदि की भी यही दशा है।
Man is more arrogant than he is poor; That is why he takes the help of religion to worship the ego. Not everyone can boast of wealth; There are more and more rich people in the world and what is the place of wealth, today is not there tomorrow, then how can ego be raised with the help of it? The same is the case with force and form. Fever comes for two days, all the strength goes out, the cheeks swell, old age also removes the bankruptcy of strength and form, then strength and form are also more than one. The same is the case with rights etc.
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यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...