अध्यात्म विज्ञान
अध्यात्मविज्ञान की उपलब्धि के लिए मनोनिग्रह की साधना करनी पड़ती है। यदि संकल्पबल की स्थिति सुदृढ़ न हो तो कुसंस्कारों से पीछा छूटता ही नहीं और उत्कर्ष की कल्पना कार्यान्वित होने के स्तर तक पहुँचती ही नहीं। अतः साधनाक्षेत्र में कारगर प्रगति करने के लिए संकल्पशक्ति को सुदृढ़ बनाने की प्रक्रिया में कार्य प्रारंभ करना होता है। इस प्रयोजन की पूर्ति व्रत-संकल्प लेते रहने और उन्हें पूरा करते रहने पर ही बन पड़ती है। शास्त्रकारों ने इसे तप-तितिक्षा के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में निरूपित किया है।
For the attainment of spiritual science, one has to practice mental control. If the position of determination is not strong, then bad habits do not leave behind and the imagination of excellence does not reach the level of implementation. Therefore, in order to make effective progress in the spiritual field, work has to be started in the process of strengthening the will power. This purpose can be fulfilled only by taking vows and fulfilling them. The scholars have described it as an important part of Tapa-Titiksha.
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यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...