पंचतत्व-जल
जल से धरती समृद्ध होती है, हरी-भरी होती है और यह हरियाली ही वायु को स्वच्छ करती है, अग्नि की तपन को अवशोषित करती है और वातावरण को सुखद बनाती है। इसलिए यदि एक पंचतत्व-जल पर ध्यान दिया जाए, तो मात्र यह तत्व ही अन्य तत्वों को संतुलित करने में सहायक हो जाता है; क्योंकि मूल में जल ही हमारा पर्यावण है और पर्यावरण ही जल है। जब जल स्वस्थ रहता है तो धरती स्वस्थ रहती है और मानव भी स्वस्थ रहता है। स्वस्थ मानव पर्यावरण के विरुद्ध काम नहीं करता।
The earth is enriched by water, it is green and it is this greenery that purifies the air, absorbs the heat of fire and makes the environment pleasant. Therefore, if attention is given to one five element – water, then only this element helps in balancing the other elements; Because basically water is our environment and environment is water. When water remains healthy, the earth remains healthy and human beings also remain healthy. A healthy human does not work against the environment.
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यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...