प्राकृतिक सौंदर्य
भौतिकता की अंधी दौड़ में दौड़ते हुए जब व्यक्ति थक जाता है, दुःखी हो जाता है, निराश हो जाता है तो वह भी अंततः प्रकृति माता की गोद में बैठकर ही स्वयं को फिर से तरोताजा कर पाता है। प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य को देखकर मानव मन को असीम शांति मिलती है। खिले हुए, झूमते हुए रंग-बिरंगे पुष्प, नदियों की कल-कल बहती हुई जलधारा, सागर में उठती हुई लहरों को देखकर, उगते हुए, अस्त होते हुए सूरज के सौंदर्य को देखकर, पूनम के चाँद को देखकर हमें मानसिक शांति व आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है। ऐसे दिव्य, शांत, निष्पाप क्षेत्र में रहकर व्यक्ति ध्यान, जप, तप में शीघ्र ही उन्नति करने लगता है।
Running in the blind race of materiality, when a person gets tired, sad, frustrated, he too can finally refresh himself by sitting in the lap of Mother Nature. Seeing the natural beauty of nature, the human mind gets immense peace. Blooming, colorful flowers swinging, rivers flowing from time to time, seeing the waves rising in the ocean, seeing the beauty of the rising sun, the setting moon, seeing the moon of Poonam give us peace of mind and spiritual bliss. There is a feeling of Staying in such a divine, peaceful, sinless area, a person soon starts progressing in meditation, chanting, austerity.
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यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...