भारतीय संस्कृति
संस्कृति का कार्य मनुष्य में एक सामाजिक चेतना और सामाजिक नैतिकता का निर्माण करके उसकी वैचारिक योग्यताओं और प्रक्रिया को संगठित करना है, लेकिन सांस्कृतिक चेतना और क्रांतिकारी मतवाद के बीच का संबंध अनुकूल नहीं होता। राजनीति का छल-प्रपंच भी उसी हद तक संस्कृति को जीवित रहने का मौका देता है जो हद उस राजनीति की ताकत पर स्वयं उसके कमजोर रहने से पैदा होती है, लेकिन जहाँ राजनीति ही राजनीति हो, वहाँ के लिए कोई जगह नहीं बचती। कहना न होगा कि उत्तर संस्कृति से मुक्त होने के लिए हमें भारतीय संस्कृति की धीमी आँच में तपना होगा। साहित्यकार भी जवाबदेही से भागकर खतरे से बचने के लिए छिपकर तथा मात्र आलोचना करने में आनंदित होकर साहित्य का भला नहीं कर सकता। समय के प्रवाह में जो गुजर गया, उसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता, लेकिन जो यथार्थ सामने है, उसके अनुसार तो कुछ किया जा सकता है। वैसे भी साहित्य को विध्वंस से बचाने के लिए रचनात्मक प्रयास होते रहे हैं और जारी भी रहेंगे।
The function of culture is to form a social consciousness and social morality in man and organize his ideological abilities and process, but the relationship between cultural consciousness and revolutionary ideology is not favorable. The shenanigans of politics also give a chance to the culture to survive to the extent that it is born out of its own weakness on the strength of that politics, but where politics is politics, there is no place left for it. Needless to say that in order to be free from the North culture, we have to undergo the slow fire of the Indian culture. Even a litterateur cannot do good to literature by running away from responsibility, hiding to avoid danger and taking pleasure in merely criticizing. Nothing can be done for what has passed in the flow of time, but according to the reality which is in front, something can be done. Anyway, constructive efforts have been made to save literature from destruction and will continue.
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यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...