ज्ञान दीप
अपने भक्तों को भगवान क्या देते हैं, बताते हुए भगवान कहते हैं- ऐसे प्रेमी भक्त जो नित्य निरंतर मुझमें ही लगे हुए हैं, प्रेमपूर्वक मेरे भजन में ही लीन है, उन्हें मैं ऐसा बुद्धियोग (ज्ञान) देता हूँ, जिससे उनको मेरी प्राप्ति हो जाती है। अर्जुन मेरे प्यारे भक्त न तो संसार चाहते हैं और न ही मुक्ति चाहते हैं, वे तो केवल मेरी अनन्य भक्ति में ही सदा डूबे रहते हैं। उनका निष्काम भाव और प्रेम देखकर मेरा ह्रदय पिघल जाता है, अतः उन पर विशेष कृपा करने के लिए मैं उनके ह्रदय में ज्ञानदीप बनकर बैठ जाता हूँ और उनके अज्ञानजन्य अंधकार को दूर करता हूँ तथा ज्ञान की ऐसी प्रखर ज्योति जला देता हूँ कि उन्हें मेरे धाम तक का मार्ग अति सुगम हो जाता है।
Explaining what God gives to his devotees, God says- Such loving devotees who are constantly engaged in me, lovingly engrossed in my hymns, I give such buddhi yoga (knowledge) to them, by which they can attain me. Is. Arjuna, my dear devotee neither wants the world nor wants liberation, he is always engrossed in exclusive devotion only to Me. Seeing their selflessness and love, my heart melts, so in order to bestow special blessings on them, I sit in their heart as a lamp of knowledge and dispel the darkness of their ignorance and burn such a bright light of knowledge that they can reach my abode. The path to reach becomes very easy.
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यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...