विद्यमान अहंकार
पुराणकथाएँ कहती हैं कि देवता असुरों से जब भी पराजित हुए, हमेशा इसका कारण उनका असंगठित होना रहा और वे संगठित इसलिए नहीं हो सके; क्योंकि प्रत्येक देवता को अपनी शक्ति का भारी अहंकार था। इसीलिए वे आपस में मिल-मिलाप न कर सकें। एक-दूसरे से तालमेल न बिठा सके। इस कथन का तात्पर्य इतना ही है कि सारे सद्गुण होते हुए भी व्यक्ति में यदि अहंकार विद्यमान है तो वह उसके सद्गुणों की शक्ति को उसी प्रकार आवृत कर लेगा, जिस प्रकार आँख में पड़ गया तिनका सारे संसार को ढक लेता है। अहंकार मनुष्य को शेष संसार से अलग कर देता है। मनुष्य को मनुष्य का दुश्मन बना देता है।
The mythology says that whenever the gods were defeated by the Asuras, it was always because of their disorganization and that they could not organize; Because each deity had a huge pride of his power. That is why they cannot mix with each other. Unable to coordinate with each other. The meaning of this statement is so much that in spite of having all the virtues, if the ego is present in a person, then it will cover the power of his virtues in the same way as a straw that falls in the eye covers the whole world. Ego separates man from the rest of the world. Makes man the enemy of man.
Existing Ego | Arya Samaj Chhindwara, 9300441615 | Arya Samaj Vivah Lagan Chhindwara | Inter Caste Marriage Consultant Chhindwara | Marriage Service in Arya Samaj Chhindwara | Arya Samaj Inter Caste Marriage Chhindwara | Arya Samaj Marriage Chhindwara | Arya Samaj Vivah Mandap Chhindwara | Inter Caste Marriage Helpline Chhindwara | Marriage Service by Arya Samaj Chhindwara | Arya Samaj Hindu Temple Chhindwara | Arya Samaj Marriage Guidelines Chhindwara | Arya Samaj Vivah Chhindwara | Inter Caste Marriage Chhindwara | Marriage Service by Arya Samaj Mandir Chhindwara | Arya Samaj Marriage Helpline Chhindwara | Marriage Service in Arya Samaj Mandir Chhindwara | Arya Samaj Intercaste Marriage Chhindwara | Arya Samaj Marriage Pandits Chhindwara | Arya Samaj Vivah Pooja Chhindwara
यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...