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विशेष सूचना - Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर चान्द, जिला- छिन्दवाड़ा" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित छिन्दवाड़ा जिले में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर चान्द के अतिरिक्त छिन्दवाड़ा जिले में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Chand, Chhindwara is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Chand, Chhindwara is the only Mandir controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Chhindwara. We do not have any other branch or Centre in Chhindwara District. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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विद्यमान अहंकार
पुराणकथाएँ कहती हैं कि देवता असुरों से जब भी पराजित हुए, हमेशा इसका कारण उनका असंगठित होना रहा और वे संगठित इसलिए नहीं हो सके; क्योंकि प्रत्येक देवता को अपनी शक्ति का भारी अहंकार था। इसीलिए वे आपस में मिल-मिलाप न कर सकें। एक-दूसरे से तालमेल न बिठा सके। इस कथन का तात्पर्य इतना ही है कि सारे सद्गुण होते हुए भी व्यक्ति में यदि अहंकार विद्यमान है तो वह उसके सद्गुणों की शक्ति को उसी प्रकार आवृत कर लेगा, जिस प्रकार आँख में पड़ गया तिनका सारे संसार को ढक लेता है। अहंकार मनुष्य को शेष संसार से अलग कर देता है। मनुष्य को मनुष्य का दुश्मन बना देता है।

 

The mythology says that whenever the gods were defeated by the Asuras, it was always because of their disorganization and that they could not organize; Because each deity had a huge pride of his power. That is why they cannot mix with each other. Unable to coordinate with each other. The meaning of this statement is so much that in spite of having all the virtues, if the ego is present in a person, then it will cover the power of his virtues in the same way as a straw that falls in the eye covers the whole world. Ego separates man from the rest of the world. Makes man the enemy of man.

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  • यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति

    यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...

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