भविष्य का सपना
भविष्य का सपना देखना आसान है, और जहाँ आसानी है, करना कुछ नहीं पड़ता, वहाँ मन विभिन्न कपोल-खोकर अपने वर्तमान को खो देता है। अतीत की यादों की भ्रांतियाँ हों या भविष्य की भ्रांतियाँ - दोनों ही हमें कार्यों से विमुख रखती हैं व पुरुषार्थ से हमको दूर करती हैं। कर्म करने के लिए, पुरुषार्थ के पुरस्कार के लिए, वर्तमान के क्षण में जीना पड़ता है। वर्तमान में जिए बगैर न तो कर्म किया जा सकता है, और न ही पुरुषार्थ किया जा सकता है। कर्मयोगी, तपस्वी, पुरुषार्थ आदि सभी न तो अपने अतीत के पलों में भटकते हैं और न ही अपना ध्यान एकाग्र करते हैं।
It is easy to dream of the future, and where there is ease, there is nothing to do, the mind loses its present under various illusions. Be it the delusions of the memories of the past or the illusions of the future - both keep us away from actions and remove us from effort. To act, to be rewarded for effort, one has to live in the present moment. Without living in the present, neither action can be done, nor effort can be made. Karma yogis, ascetics, purusharthas, etc., neither wander in the moments of their past nor concentrate their attention.
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यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...