वर्तमान की आधारशिला
बुद्धिमान वही होता है, जो वर्तमान की आधारशिला पर अपने भविष्य का राजमहल खड़ा करता है, इसके विपरीत विचारहीन, वर्तमान के लोभी अपने लिए और अपने साथ समाज के लिए भी कष्टकर परिस्थितियाँ पैदा किया करते हैं। यदि ऐसे लोगों की विचारधारा में संशोधन करके समाजमुखी बनाया जा सके; तो निष्पाप समाज की रचना बहुत कठिन न रह जाए। मनुष्यों के कुमार्ग पर भटक जाने का एक कारण और भी है। सत्कर्मों का कोई तात्कालिक लाभ उतना शीघ्र नहीं मिलता, जितना शीघ्र असत्य अथवा बेईमानी आदि कुकर्मों का लाभ। फिर सत्कर्मों में कुछ त्याग भी रहता है; कुछ कष्ट भी। इस सरलता के धोखे में आकर लोग सन्मार्ग पर न चलकर कुमार्ग की ओर बढ़ जाते हैं। ऐसे लाभ के लोभी जल्दबाजों को सोचना चाहिए कि धैर्य का फल मीठा होता है और देर तक आनंद देने वाला भी।
The wise is the one who builds the palace of his future on the foundation of the present, on the contrary, the thoughtless, greedy of the present create painful conditions for himself and for the society as well. If the ideology of such people can be modified to make them social-oriented; So the creation of a sinless society should not be very difficult. There is another reason for human beings to go astray. There is no immediate benefit of good deeds as soon as the benefits of untrue or dishonest deeds etc. Then there is also some renunciation in good deeds; Some trouble too. By being deceived of this simplicity, people do not follow the right path and move towards the wrong path. The hasty ones who are greedy for such profit should think that the fruit of patience is sweet and also gives pleasure for a long time.
यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...