यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति
ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है कि जनता नाम जो मनुष्यों का समूह है, उसी के सुख के लिए यज्ञ होता है और संस्कार किये हुए द्रव्यों का होम करने वाला जो विद्वान मनुष्य है, वह भी आनन्द को प्राप्त होता है। क्योंकि जो मनुष्य जगत का जितना उपकार करेगा उसको उतना ही ईश्वर की व्यवस्था से सुख प्राप्त होगा। इसलिए अर्थवाद यह है कि अनर्थ दोषों को हटा के जगत में आनन्द को बढाता है। परन्तु होम के द्रव्यों का उत्तम संस्कार और होम करने वाले मनुष्यों को होम करने की श्रेष्ठ विद्या अवश्य होनी चाहिए। सो इसी प्रकार के यज्ञ करने से सबको उत्तम फल प्राप्त होता है, विशेष करके यज्ञकर्त्ता को, अन्यथा नहीं।
यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बीसवें मन्त्र के भाष्य में महर्षि ने लिखा है कि जो मनुष्य विद्वानों का सुख, पढने, अन्तःकरण के विशेष ज्ञान तथा वाणी और पवन आदि पदार्थों की शुद्धि के लिए यज्ञक्रियाओं को करते हैं, वे सुखी होते हैं।
In the chapter Veda Vishay Vichar of Rigvedadibhashyabhumika, Maharishi Dayanand Saraswati has described that the steam that arises in the yajna makes the air and rainwater pure and fragrant and makes the whole world happy, hence the yajna is performed for the welfare of others. In this regard, Maharishi has given the proof of Aitareya Brahman and written that the yajna is performed for the happiness of the group of humans called the public and the learned person who performs the oblation of the sanctified substances also attains happiness. Because the more a person does good to the world, the more happiness he will get from the arrangement of God. Therefore, the meaning of the verse is that it increases happiness in the world by removing the evil defects.
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यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...