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विशेष सूचना - Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर चान्द, जिला- छिन्दवाड़ा" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित छिन्दवाड़ा जिले में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर चान्द के अतिरिक्त छिन्दवाड़ा जिले में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Chand, Chhindwara is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Chand, Chhindwara is the only Mandir controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Chhindwara. We do not have any other branch or Centre in Chhindwara District. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति

ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है कि जनता नाम जो मनुष्यों का समूह है, उसी के सुख के लिए यज्ञ होता है और संस्कार किये हुए द्रव्यों का होम करने वाला जो विद्वान मनुष्य है, वह भी आनन्द को प्राप्त होता है। क्योंकि जो मनुष्य जगत का जितना उपकार करेगा उसको उतना ही ईश्‍वर की व्यवस्था से सुख प्राप्त होगा। इसलिए अर्थवाद यह है कि अनर्थ दोषों को हटा के जगत में आनन्द को बढाता है। परन्तु होम के द्रव्यों का उत्तम संस्कार और होम करने वाले मनुष्यों को होम करने की श्रेष्ठ विद्या अवश्य होनी चाहिए। सो इसी प्रकार के यज्ञ करने से सबको उत्तम फल प्राप्त होता है, विशेष करके यज्ञकर्त्ता को, अन्यथा नहीं।

यजुर्वेद के बाइसवें अध्याय के बीसवें मन्त्र के भाष्य में महर्षि ने लिखा है कि जो मनुष्य विद्वानों का सुख, पढने, अन्तःकरण के विशेष ज्ञान तथा वाणी और पवन आदि पदार्थों की शुद्धि के लिए यज्ञक्रियाओं को करते हैं, वे सुखी होते हैं।•

In the chapter Veda Vishay Vichar of Rigvedadibhashyabhumika, Maharishi Dayanand Saraswati has described that the steam that arises in the yajna makes the air and rainwater pure and fragrant and makes the whole world happy, hence the yajna is performed for the welfare of others. In this regard, Maharishi has given the proof of Aitareya Brahman and written that the yajna is performed for the happiness of the group of humans called the public and the learned person who performs the oblation of the sanctified substances also attains happiness. Because the more a person does good to the world, the more happiness he will get from the arrangement of God. Therefore, the meaning of the verse is that it increases happiness in the world by removing the evil defects.

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  • यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति

    यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...

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