वीरों का भूषण
त्याग वीरों का भूषण है। शिवि, हरिश्चंद्र, शंकराचार्य, बंदा बैरागी जैसा त्याग चाहिए। तिल-तिल गलने वाले हिमालय जैसा त्याग चाहिए, जो गलकर पावन गंगा, यमुना जैसी नदियों को लोगों की प्यास बुझाने एवं परित्राण करने हेतु जन्म देता है। आज उसी त्याग की आवश्यकता है कि हम अपने अंदर ईर्ष्या, द्वेष, कामना, वासना, अहंकाररूपी दुष्प्रवृत्तियों एवं दुर्गुणों को क्रमशः उखाड़ फेंकें और बदले में प्रेम, दया, सेवा, सहकार, शिष्टाचार, शालीनता, विनम्रता, सत्य, सदाचार आदि सत्प्रवृत्तियों को धारण करें। यही सच्चा साहस, शौर्य, पराक्रम है। यही हमारी वीरता का मापदंड एवं मानदंड है, जिसे अपनाकर हम सच्चे अर्थों में वीर साहसी कहला सकते हैं।
Sacrifice is the decoration of the heroes. Sacrifice like Shivi, Harishchandra, Shankaracharya, Banda Bairagi is needed. Sacrifice is needed like the Himalayas that melt mole by mole, which melts and gives birth to rivers like the holy Ganga, Yamuna to quench the thirst of the people and to save them. Today, the same sacrifice is required that we should uproot the vices and bad qualities of jealousy, hatred, desire, lust, ego and in return, we should adopt the virtues of love, kindness, service, co-operation, courtesy, decency, humility, truth, virtue etc. Do it. This is the true courage, bravery, bravery. This is the standard and criteria of our bravery, by adopting which we can be called heroic adventurers in the true sense.
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यज्ञ द्वारा सुख की प्राप्ति ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय विचार अध्याय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वर्णित किया है कि यज्ञ में जो भाप उठता है, वह वायु और वृष्टि के जल को निर्दोष और सुगन्धित करके सब जगत को सुखी करता है, इससे वह यज्ञ परोपकार के लिए होता है। महर्षि ने इस सम्बन्ध में ऐतरेय ब्राह्मण का प्रमाण देते हुए लिखा है...